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शिवाय नमः |
ध्याये नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं
रत्नकल्पो ज्वलान्गम् परसु मृग वर भितिहस्तं प्रसन्नं
पद्मासिनं समन्तात स्तुतं अमरगणै : व्याघ्रकृत्तिं वसानं
विश्वाद्यं विश्ववन्द्यं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रं
अर्थ: पञ्चमुखी, त्रिनेत्रधारी, चांदी की तरह तेजोमयी, चंद्र को सिर पर धारण करने वाले, जिनके अंग-अंग रत्न-आभूषणों से दमक रहे हैं, चार हाथों में परशु, मृग, वर और अभय मुद्रा है। मुखमण्डल पर आनंद प्रकट होता है, पद्मासन पर विराजित हैं, सारे देव, जिनकी वंदना करते हैं, बाघ की खाल धारण करने वाले ऐसे सृष्टि के मूल, रचनाकार महेश्वर का मैं ध्यान करता हूं।
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय श्रीभूतनाथाय नमः शिवाय ॥
Salutations to Shiva,who who wears the King of snakes as a
garland, the Three-eyed God, whose body is smeared with
ashes, the great Lord, the eternal and pure One, who wears
the directions as His garment, and who the master of panch mahabhoot.
जाप
ॐ नमः शिवाय
माँ दुर्गे |
सिंहारूढां त्रिनेत्रां करतलविलसत् शंखचक्रासिरम्यां
भक्ताभीष्टप्रदात्रीं रिपुमथनकरीं सर्वलोकैकवन्द्याम् ।
सर्वालङ्कारयुक्तां शशियुतमकुटां श्यामलाङ्गीं कृशाङ्गीं
दुर्गां देवीं प्रपद्ये शरणमहमशेषापदुन्मूलनाय ॥
सिंहारूढ़ा तीन नेत्रो वाली, हाथ में शंख चक्र तलवार धारण किए, सुंदर रूपा, भक्तों के मनोरथ पूर्ण करने वाली, दुष्ट नाशिनी, समस्त लोकों की वंदनीया, सभी आभूषणों से सजी, चंद्रमुकुटा, साँवले रंग की, कृशांगी भगवती दुर्गा की मैं सभी आपदाओं के नाश के लिए शरण ग्रहण करता हूँ
(अर्थ : आभार शुभम उपाध्याय)
जाप
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥
ॐ दुर्गे दुर्गे रक्षिणी स्वाहा
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